सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

कबरा पहाड़ के शैलाश्रय जिन्हें देखकर मनुष्य और पुरातन सभ्यता के अंतरसंबंधों को आज भी किसी न किसी रूप में यहाँ आकर हम महसूस करते हैं

कबरा पहाड़ को मैं बचपन से देखते आ रहा हूँ क्योंकि हमारे गाँव जुर्डा से लगे गजमार पहाड़ी श्रृंखला का यह एक अभिन्न हिस्सा है । मैं लगभग 8  से 10 साल का रहा हूंगा जब एक नेपाली बाबा यहां पहाड़ की तलहटी पर झोपड़ी बनाकर रहते थे। लोगों को जब पता चला तो गांव के गांव उठकर उनके दर्शन के लिए चल पड़ते थे ।उनमें मैं भी एक था जो वहां चलकर गया था। 

'कबरा' शब्द छत्तीसगढ़ी का शब्द है, जिसे हिन्दी अर्थ में धब्बेदार शब्द से हम जोड़ सकते हैं। यह मझोले और छोटे ऊँचाई के सघन वृक्षों और झाड़ियों से ढंका बलुआ पत्थरों का विस्तृत पहाड़ है । यह पहाड़ वनस्पतियों के हरे-भरे केनवास में जगह-जगह उभरे बलुआ चट्टानों की वजह से दूर से देखने पर हमारी आँखों में धब्बेदार दिखाई देता है। संभवतः पहाड़ का यह नाम इसी वजह से ही कबरा पड़ा होगा । यद्यपि हमारे गाँव के पुराने लोग इसे आज भी ‘गजमार पहाड़’ के नाम से ही पुकारते हैं । कबरा पहाड़ उत्तर-पश्चिम से दक्षिण-पूर्व में धनुषाकार में फैला हुआ है। इसका उत्तर-पश्चिमी छोर रायगढ़ के पहाड़ मंदिर से ही आरंभ हो जाता है । रायगढ़ शहर के पूर्वी क्षेत्र में इसी गजमार पहाड़ी श्रृंखला के ऊपर पहाड़ मंदिर स्थित है जो नगर का एक प्रमुख दर्शनीय स्थल है। वहीं इस श्रृंखला का दक्षिण-पूर्वी हिस्सा ओड़िशा के प्रसिद्ध हीराकुंड बाँध के मुहाने पर बसे घुनघुटापाली नामक गाँव में समाप्त हो जाता है। यहाँ स्थित कदमघाट में घण्टेश्वरी देवी का मंदिर भी है जो एक महत्वपूर्ण दर्शनीय स्थल है।

छत्तीसगढ़ के रायगढ़ नगर से पूर्व दिशा में 13 किलोमीटर दूर स्थित ग्राम पंचायत लोइंग आता है | यहाँ 1980 में मेरी पूर्व माध्यमिक की शिक्षा पूरी हुई थी | इसी लोइंग ग्राम पंचायत अंतर्गत एक आश्रित ग्राम भोजपल्ली  आता है जहाँ से कबरा पहाड़ लगभग सटा हुआ है|

यहां पढ़ते समय भी हम लोग कबरा पहाड़ कभी-कभार जाया करते थे।

उल्लेखनीय है कि 1972 के पहले भोजपल्ली गाँव का नाम भेजरापाली हुआ करता था। छत्तीसगढ़ और ओड़िशा राज्य के सीमा से लगे  होने के कारण इस क्षेत्र में छत्तीसगढ़ी और उड़िया दोनों भाषाओं को बोलने वाले लोग मौजूद हैं । भोजपल्ली गाँव के पश्चिम में आमा तालाब है और ठीक उसके पीछे चित्रित शैलाश्रय वाला कबरा पहाड़। आमा तालाब के अंतिम छोर पर जंगली बेल, झुरमुटों और कंटीली झाड़ियों से होकर गुज़रती पथरीली पगडंडी पर चलते हुए लगभग 2000 फुट की ऊँचाई पर चित्रित शैलाश्रय तक पहुँचा जा सकता है। खड़ी चढ़ाई और दुर्गम पैदल रास्ता  बच्चों और बुजुर्गों के लिए फिलहाल आज भी अनुकूल नहीं है।

लगभग 100 मीटर चौड़े और 5-10 मीटर गहरे प्रागैतिहासिक काल के इस शैलाश्रय की ऊँचाई , उसकी चौड़ाई की लगभग आधी ही होगी। पहाड़ की बाहर की ओर झुकी दीवार पृथ्वी सतह के सापेक्ष 70 डिग्री का कोण बनाती हुई लगती है, जिससे इसके छतरी  होने जैसा आभास ही नहीं होता और बिना किसी कृत्रिम प्रकाश के शैलाश्रय के चित्रों को सूर्योदय से सूर्यास्त तक स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है।


शैलाश्रय की दीवार पर 25-30 फुट की ऊँचाई तक चित्रों का अंकन देखा जा सकता है। ऊँचाई पर बने प्रागैतिहासिक काल के चित्रों को देखकर उन्हें बनाने वालों की कठोर श्रम साधना का अनुमान सहज रूप से किया जा सकता है। इतनी ऊँचाई पर निर्मित चित्रों के आस-पास ऐसा कोई चट्टानी आधार भी नहीं है, संभव है कि तत्कालीन मानव ने ऊँचाई पर चित्रकारी के लिए सीढ़ी का उपयोग किया हो।

इस शैलाश्रय में जंगली जीव, जलीय जीव, सरीसृप और कीट-पतंगों के साथ ही भिन्न-भिन्न आकार-प्रकार की रेखाकृतियों का अंकन है।यहाँ के चित्रों में जटिल रेखांकन जैसे सर्पिल ऊर्ध्वाधर और क्षैतिज रेखाएं, त्रिकोण आकृति, 36 आरियों वाले पहिये (जो अनुष्ठानिक भी हो सकते हैं), के अलावा जंगली पशु जैसे लकड़बग्घा, हिरण, साही, नीलगाय और बारहसिंगा; जलीय जीव जैसे कछुवा, मछली, केंचुवा; पक्षियों में मोर; सरीसृप में गोह अथवा छिपकली; कीट पतंगों में तितली और मकड़ी एवं नाचते हुए मानवपंक्ति तथा ताड़ वृक्ष का अंकन उल्लेखनीय हैं। वर्तमान में यहाँ के पहाड़ी जंगल में भालू, लोमड़ी, लकड़बग्घा, गोह, सर्प आदि विचरते हुए दीख जाते हैं। हिरण, बारहसिंघा और मोर के अनुकूल यहाँ का जंगली पर्यावरण अब नहीं रहा इसलिए यहाँ ये सब दिखाई नहीं देते |

पहाड़ की दीवारों पर उकेरे गए अधिकांश चित्र लाल और कुछेक भूरे रंग के हैं। लाल रंग के चित्र पूरी तरह से भरे हुए हैं, जबकि भूरे रंग वाले चित्रों में केवल रेखांकन की प्रधानता देखी जा सकती है। विविध आकार-प्रकार एवं विषयों के चित्रण के साथ ही यहाँ भिन्न-भिन्न काल खण्डों में निर्मित चित्र भी हैं। इन चित्रों के आकार, प्रारूप, संयोजन की कला एवं बनाने की कला के आधार पर विद्वान इस स्थान पर मध्यपाषाण काल से लेकर ऐतिहासिक काल तक मानवीय गतिविधियों के सुचारू रूप से संपन्न होने के प्रमाण स्वीकार करते हैं। कई स्थानों पर पूर्ववर्ती काल के चित्रों पर ही परवर्ती काल के चित्रों को ओवरलेपिंग (आरोपित)किया गया है। कुछ कम अक्ल पर्यटकों के द्वारा शैलचित्रों पर अपना नाम लिख दिये जाने से इस प्राचीन धरोहर स्थल का मौलिक स्वरूप बुरी तरह प्रभावित होता गया है इस कारण वर्तमान में  शैलचित्रों की संख्या का केवल अनुमान ही लगाया जा सकता है । अनुमानतः शैल चित्रों की संख्या 100 से 125 के आसपास हो सकती है।

हमारे गाँव के आसपास के गांवों के स्थानीय लोगों में कबरा पहाड़ शैलाश्रय और उसमें बने चित्रों को लेकर कई रोचक बातें प्रचलित हैं। गाँव के वयोबृद्ध बुजुर्ग श्री त्रिलोचन गुप्ता कहते हैं कि कबरा पहाड़ के चित्रों को गाँव वाले देवी देवताओं का चित्र मानते हैं और प्रतिवर्ष फाल्गुन पूर्णिमा होली को वहाँ रात भर विविध अनुष्ठान जैसे पूजा पाठ , कीर्तन एवं नामयज्ञ (हरे राम हरे राम, राम-राम हरे-हरे। हरे कृष्ण हरे कृष्ण, कृष्ण-कृष्ण हरे-हरे।।) का निरन्तर गान होता है, जिसमें आस-पास के चार छः गाँव यथा लोइंग, जुरडा, विश्वनाथपाली, कोटरापाली,महापल्ली, कोसमपाली के लोग भी शामिल होते हैं। पूजा-अनुष्ठान में महिला-पुरूष समान रूप से भाग लेते हैं । होली के अलावा नवरात्रि और महाशिवरात्रि के अवसर पर भी लोग वहाँ जाकर पूजा करते हैं। इस क्षेत्र में  दूसरी जनश्रुति यह है कि यहाँ उनके पूर्वजों का इतना धन (खजाना) गड़ा हुआ है कि उससे पूरे संसार को ढाई दिन तक खाना खिलाया जा सकता है। यहाँ मधु मक्खियों की फ़ौज भी दिखाई पड़ती है जिनके बारे में लोग कहते हैं कि ये पूर्वजों के बनाये इन चित्रों और खजाने की रक्षा करती हैं | यह भी लोग कहते हैं कि गाँव वालों को कभी-कभी रात में शैलाश्रय स्थल पर अचानक प्रकाश और चमक दिखाई पड़ती है। यह भी मान्यता है कि गाँव के लोगों की कोई कीमती वस्तु या पशुधन खो जाता है तो वे कबरापाट देवता से उसके मिल जाने की  विनती भी करते हैं जिससे खोई हुई वस्तु मिल जाती है और फिर पूजा पाठ कर प्रसाद चढ़ाया जाता है।

कबरा पहाड़ के शैलाश्रय को लेकर गाँव में कुछ नियम कायदे भी हैं। आज भी यह लोक मान्यता है कि उस स्थान पर नशा करना, धूम्रपान करना, जूते-चप्पल पहनकर जाना, रजस्वला स्त्री का जाना और अशुद्धि यथा किसी परिवार में किसी के जन्म या मृत्यु के दौरान उनके वहां जाने की सख्त मनाही है और जो नहीं मानकर, अपवित्र होकर वहाँ जाते हैं तब  मधुमक्खियाँ उन्हें काटकर भगा देती हैं तथा उसके साथ अनिष्ट होता है।  

रायगढ़ नगर के नजदीक होने के कारण यहाँ आने वाले पर्यटकों की संख्या अधिक होती है |कई बार यहाँ विदेशी पर्यटकों का भी आना हुआ है। यहाँ आकर  एक बात जो मुझे आज भी बुरी लगती है  वह यह कि कुछ लोगों ने शैलचित्रों पर पेंट ,  कोयला, चाक इत्यादि से अपना नाम लिख दिया है । इस तरह की हरकतों से प्राचीन धरोहर को निश्चय ही क्षति पहुंची है । वन विभाग के जिम्मेदार अफसरों ने स्थल को सुरक्षित करने  के लिए  तारों की बाड़ भी लगवाई थी ताकि आने वाले पर्यटक दूर से ही इन चित्रों का अवलोकन करें और उन्हें हाथ न लगा सकें।आज की हालत यह है कि  इन तार के बाड़े को भी लोग उखाड़ कर ले गये हैं जो कि दुर्भाग्य जनक वाकया है |

कबरा पहाड़ से जुड़ी उपरोक्त मान्यताओं के साथ ही शैलाश्रय के बीचों-बीच हाल ही में बने एक चबूतरे पर रखे पत्थर को आसपास के गाँव वालों द्वारा शिवलिंग के रूप में पूजा जाता है | लोगों की आस्था के नज़रिए से इसे देखें तो कबरा पहाड़ का यह शैलाश्रय भले ही शासन प्रशासन की नज़र में अब अनुपयोगी हो गया हो, या आज का आदमी उस आदिम चित्रकारी को भले ही भूल चुका हो, पर कई सदियों और कई पीढ़ियों से चले आ रहे मनुष्य और पुरातन सभ्यता के अंतरसंबंधों को आज भी किसी न किसी रूप में यहाँ आकर हम महसूस करते हैं।

----------

सम्पर्क :  मो.7722975017


टिप्पणियाँ

  1. कबरा पहाड़ के शैलचित्रों एवं उससे जुड़ी हुई किंवदंतियों को लेकर कई नयी जानकारी प्राप्त हुई। धन्यवाद।

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत अच्छी जानकारी, धन्यवाद🙏🙏

    जवाब देंहटाएं
  3. छत्तीसगढ़ सरकार का सरंक्षण मिलना चाहिए, म. प्र. के भीम बेटका मे गया हूँ इस तरह के शिलालेख हैं कबरा पहाड़ को दर्शनीय स्थल बनाया जा सकता है|

    जवाब देंहटाएं

एक टिप्पणी भेजें

इन्हें भी पढ़ते चलें...

कौन हैं ओमा द अक और इनदिनों क्यों चर्चा में हैं।

आज अनुग्रह के पाठकों से हम ऐसे शख्स का परिचय कराने जा रहे हैं जो इन दिनों देश के बुद्धिजीवियों के बीच खासा चर्चे में हैं। आखिर उनकी चर्चा क्यों हो रही है इसको जानने के लिए इस आलेख को पढ़ा जाना जरूरी है। किताब: महंगी कविता, कीमत पच्चीस हजार रूपये  आध्यात्मिक विचारक ओमा द अक् का जन्म भारत की आध्यात्मिक राजधानी काशी में हुआ। महिलाओं सा चेहरा और महिलाओं जैसी आवाज के कारण इनको सुनते हुए या देखते हुए भ्रम होता है जबकि वे एक पुरुष संत हैं । ये शुरू से ही क्रान्तिकारी विचारधारा के रहे हैं । अपने बचपन से ही शास्त्रों और पुराणों का अध्ययन प्रारम्भ करने वाले ओमा द अक विज्ञान और ज्योतिष में भी गहन रुचि रखते हैं। इन्हें पारम्परिक शिक्षा पद्धति (स्कूली शिक्षा) में कभी भी रुचि नहीं रही ।  इन्होंने बी. ए. प्रथम वर्ष उत्तीर्ण करने के पश्चात ही पढ़ाई छोड़ दी किन्तु उनका पढ़ना-लिखना कभी नहीं छूटा। वे हज़ारों कविताएँ, सैकड़ों लेख, कुछ कहानियाँ और नाटक भी लिख चुके हैं। हिन्दी और उर्दू में  उनकी लिखी अनेक रचनाएँ  हैं जिनमें से कुछ एक देश-विदेश की कई प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुक...

परदेशी राम वर्मा की कहानी दोगला

परदेशी राम वर्मा की कहानी दोगला वागर्थ के फरवरी 2024 अंक में है। कहानी विभिन्न स्तरों पर जाति धर्म सम्प्रदाय जैसे ज्वलन्त मुद्दों को लेकर सामने आती है।  पालतू कुत्ते झब्बू के बहाने एक नास्टेल्जिक आदमी के भीतर सामाजिक रूढ़ियों की जड़ता और दम्भ उफान पर होते हैं,उसका चित्रण जिस तरह कहानी में आता है वह ध्यान खींचता है। दरअसल मनुष्य के इसी दम्भ और अहंकार को उदघाटित करने की ओर यह कहानी गतिमान होती हुई प्रतीत होती है। पालतू पेट्स झब्बू और पुत्र सोनू के जीवन में घटित प्रेम और शारीरिक जरूरतों से जुड़ी घटनाओं की तुलना के बहाने कहानी एक बड़े सामाजिक विमर्श की ओर आगे बढ़ती है। पेट्स झब्बू के जीवन से जुड़ी घटनाओं के उपरांत जब अपने पुत्र सोनू के जीवन से जुड़े प्रेम प्रसंग की घटना उसकी आँखों के सामने घटित होते हैं तब उसके भीतर की सामाजिक जड़ता एवं दम्भ भरभरा कर बिखर जाते हैं। जाति, समाज, धर्म जैसे मुद्दे आदमी को झूठे दम्भ से जकड़े रहते हैं। इनकी बंधी बंधाई दीवारों को जो लांघता है वह समाज की नज़र में दोगला होने लगता है। जाति धर्म की रूढ़ियों में जकड़ा समाज मनुष्य को दम्भी और अहंकारी भी बनाता है। कहानी इन दीवा...

जैनेंद्र कुमार की कहानी 'अपना अपना भाग्य' और मन में आते जाते कुछ सवाल

कहानी 'अपना अपना भाग्य' की कसौटी पर समाज का चरित्र कितना खरा उतरता है इस विमर्श के पहले जैनेंद्र कुमार की कहानी अपना अपना भाग्य पढ़ते हुए कहानी में वर्णित भौगोलिक और मौसमी परिस्थितियों के जीवंत दृश्य कहानी से हमें जोड़ते हैं। यह जुड़ाव इसलिए घनीभूत होता है क्योंकि हमारी संवेदना उस कहानी से जुड़ती चली जाती है । पहाड़ी क्षेत्र में रात के दृश्य और कड़ाके की ठंड के बीच एक बेघर बच्चे का शहर में भटकना पाठकों के भीतर की संवेदना को अनायास कुरेदने लगता है। कहानी अपने साथ कई सवाल छोड़ती हुई चलती है फिर भी जैनेंद्र कुमार ने इन दृश्यों, घटनाओं के माध्यम से कहानी के प्रवाह को गति प्रदान करने में कहानी कला का बखूबी उपयोग किया है। कहानीकार जैनेंद्र कुमार  अभावग्रस्तता , पारिवारिक गरीबी और उस गरीबी की वजह से माता पिता के बीच उपजी बिषमताओं को करीब से देखा समझा हुआ एक स्वाभिमानी और इमानदार गरीब लड़का जो घर से कुछ काम की तलाश में शहर भाग आता है और समाज के संपन्न वर्ग की नृशंस उदासीनता झेलते हुए अंततः रात की जानलेवा सर्दी से ठिठुर कर इस दुनिया से विदा हो जाता है । संपन्न समाज ऎसी घटनाओं को भाग्य से ज...

गंगाधर मेहेर : ओड़िया के लीजेंड कवि gangadhar meher : odiya ke legend kavi

हम हिन्दी में पढ़ने लिखने वाले ज्यादातर लोग हिंदी के अलावा अन्य भाषाओं के कवियों, रचनाकारों को बहुत कम जानते हैं या यह कहूँ कि बिलकुल नहीं जानते तो भी कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी ।  इसका एहसास मुझे तब हुआ जब ओड़िसा राज्य के संबलपुर शहर में स्थित गंगाधर मेहेर विश्वविद्यालय में मुझे एक राष्ट्रीय संगोष्ठी में बतौर वक्ता वहां जाकर बोलने का अवसर मिला ।  2 और 3  मार्च 2019 को आयोजित इस दो दिवसीय संगोष्ठी में शामिल होने के बाद मुझे इस बात का एहसास हुआ कि जिस शख्श के नाम पर इस विश्वविद्यालय का नामकरण हुआ है वे ओड़िसा राज्य के ओड़िया भाषा के एक बहुत बड़े कवि हुए हैं और उन्होंने अपनी कविताओं के माध्यम से  ओड़िसा राज्य को देश के नक़्शे में थोड़ा और उभारा है। वहां जाते ही इस कवि को जानने समझने की आतुरता मेरे भीतर बहुत सघन होने लगी।वहां जाकर यूनिवर्सिटी के अध्यापकों से , वहां के विद्यार्थियों से गंगाधर मेहेर जैसे बड़े कवि की कविताओं और उनके व्यक्तित्व के बारे में जानकारी जुटाना मेरे लिए बहुत जिज्ञासा और दिलचस्पी का बिषय रहा है। आज ओड़िया भाषा के इस लीजेंड कवि पर अपनी बात रखते हुए मुझे जो खु...

छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक राजधानी रायगढ़ - डॉ. बलदेव

अब आप नहीं हैं हमारे पास, कैसे कह दूं फूलों से चमकते  तारों में  शामिल होकर भी आप चुपके से नींद में  आते हैं  जब सोता हूँ उड़ेल देते हैं ढ़ेर सारा प्यार कुछ मेरी पसंद की  अपनी कविताएं सुनाकर लौट जाते हैं  पापा और मैं फिर पहले की तरह आपके लौटने का इंतजार करता हूँ           - बसन्त राघव  आज 6 अक्टूबर को डा. बलदेव की पुण्यतिथि है। एक लिखने पढ़ने वाले शब्द शिल्पी को, लिख पढ़ कर ही हम सघन रूप में याद कर पाते हैं। यही परंपरा है। इस तरह की परंपरा का दस्तावेजीकरण इतिहास लेखन की तरह होता है। इतिहास ही वह जीवंत दस्तावेज है जिसके माध्यम से आने वाली पीढ़ियां अपने पूर्वज लेखकों को जान पाती हैं। किसी महत्वपूर्ण लेखक को याद करना उन्हें जानने समझने का एक जरुरी उपक्रम भी है। डॉ बलदेव जिन्होंने यायावरी जीवन के अनुभवों से उपजीं महत्वपूर्ण कविताएं , कहानियाँ लिखीं।आलोचना कर्म जिनके लेखन का महत्वपूर्ण हिस्सा रहा। उन्हीं के लिखे समाज , इतिहास और कला विमर्श से जुड़े सैकड़ों लेख , किताबों के रूप में यहां वहां लोगों के बीच आज फैले हुए हैं। विच...

रायगढ़ जिले के विभिन्न आयोजनों में शामिल होंगे वित्त मंत्री ओम प्रकाश चौधरी। महापल्ली में उनके हाथों स्व.हेमसुंदर गुप्त की मूर्ति का होगा अनावरण

रायगढ़ । रायगढ़ विधायक एवम  सूबे के वित्त मंत्री ओपी चौधरी गुरुवार 7 मार्च 2024 को रायगढ़ जिले के विभिन्न आयोजनों में शामिल होंगे। निर्धारित दौरे के मुताबिक इन आयोजनों में शामिल होने के लिए वे प्रातः 8 बजे रायपुर से सड़क मार्ग द्वारा कार से रवाना होकर 12 बजे सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र का लोकार्पण करने के लिए पुसौर पहुंचेंगे।आयोजन उपरांत पुसौर से रायगढ़ के लिए वे रवाना हो जाएंगे और एक बजे रायगढ़ मिनी स्टेडियम में मुख्यमंत्री कन्या विवाह योजना कार्यक्रम में शामिल होंगे।रायगढ़ में ही अपरान्ह 1.30 बजे डिग्री कॉलेज रायगढ़ के वार्षिकोत्सव आयोजन में वे शामिल होकर विद्यार्थियों का मनोबल बढ़ाएंगे। रायगढ़ से ग्राम जुरडा के लिए वे फिर रवाना हो जाएंगे और अपरान्ह 3 बजे ग्राम जुरडा में आयोजित जिला स्तरीय पशु मेला कार्यक्रम में शामिल होंगे और ग्रामीणों से संवाद भी करेंगे। कल के उनके व्यस्त कार्यक्रम में जो अंतिम कार्यक्रम है वह महापल्ली ग्राम में सम्पन्न होगा जहां वे  स्वर्गीय हेमसुंदर गुप्त की मूर्ति का अनावरण करेंगे और साथ ही सभा को संबोधित करेंगे। महापल्ली के इस आयोजन में उनके साथ पूर्व विध...

समकालीन कविता और युवा कवयित्री ममता जयंत की कविताएं

समकालीन कविता और युवा कवयित्री ममता जयंत की कविताएं दिल्ली निवासी ममता जयंत लंबे समय से कविताएं लिख रही हैं। उनकी कविताओं को पढ़ते हुए यह बात कही जा सकती है कि उनकी कविताओं में विचार अपनी जगह पहले बनाते हैं फिर कविता के लिए जरूरी विभिन्न कलाएं, जिनमें भाषा, बिम्ब और शिल्प शामिल हैं, धीरे-धीरे जगह तलाशती हुईं कविताओं के साथ जुड़ती जाती हैं। यह शायद इसलिए भी है कि वे पेशे से अध्यापिका हैं और बच्चों से रोज का उनका वैचारिक संवाद है। यह कहा जाए कि बच्चों की इस संगत में हर दिन जीवन के किसी न किसी कटु यथार्थ से वे टकराती हैं तो यह कोई अतिशयोक्ति भरा कथन नहीं है। जीवन के यथार्थ से यह टकराहट कई बार किसी कवि को भीतर से रूखा बनाकर भाषिक रूप में आक्रोशित भी कर सकता है । ममता जयंत की कविताओं में इस आक्रोश को जगह-जगह उभरते हुए महसूसा जा सकता है। यह बात ध्यातव्य है कि इस आक्रोश में एक तरलता और मुलायमियत है। इसमें कहीं हिंसा का भाव नहीं है बल्कि उद्दात्त मानवीय संवेदना के भाव की पीड़ा को यह आक्रोश सामने रखता है । नीचे कविता की कुछ पंक्तियों को देखिए, ये पंक्तियाँ उसी आक्रोश की संवाहक हैं - सोचना!  सो...

रघुनंदन त्रिवेदी की कहानी : हम दोनों

स्व.रघुनंदन त्रिवेदी मेरे प्रिय कथाकाराें में से एक रहे हैं ! आज 17 जनवरी उनका जन्म दिवस है।  आम जन जीवन की व्यथा और मन की बारिकियाें काे अपनी कहानियाें में मौलिक ढंग से व्यक्त करने में वे सिद्धहस्त थे। कम उम्र में उनका जाना हिंदी के पाठकों को अखरता है। बहुत पहले कथादेश में उनकी काेई कहानी पढी थी जिसकी धुंधली सी याद मन में है ! आदमी काे अपनी चीजाें से ज्यादा दूसराें की चीजें  अधिक पसंद आती हैं और आदमी का मन खिन्न हाेते रहता है ! आदमी घर बनाता है पर उसे दूसराें के घर अधिक पसंद आते हैं और अपने घर में उसे कमियां नजर आने लगती हैं ! आदमी शादी करता है पर किसी खूबसूरत औरत काे देखकर अपनी पत्नी में उसे कमियां नजर आने लगती हैं ! इस तरह की अनेक मानवीय मन की कमजाेरियाें काे बेहद संजीदा ढंग से कहानीकार पाठकाें के सामने प्रस्तुत करते हैं ! मनुष्य अपने आप से कभी संतुष्ट नहीं रहता, उसे हमेशा लगता है कि दुनियां थाेडी इधर से उधर हाेती ताे कितना अच्छा हाेता !आए दिन लाेग ऐसी मन: स्थितियाें से गुजर रहे हैं , कहानियां भी लाेगाें काे राह दिखाने का काम करती हैं अगर ठीक ढंग से उन पर हम अपना ध्यान केन्...

गजेंद्र रावत की कहानी : उड़न छू

गजेंद्र रावत की कहानी उड़न छू कोरोना काल के उस दहशतजदा माहौल को फिर से आंखों के सामने खींच लाती है जिसे अमूमन हम सभी अपने जीवन में घटित होते देखना नहीं चाहते। अम्मा-रुक्की का जीवन जिसमें एक दंपत्ति के सर्वहारा जीवन के बिंदास लम्हों के साथ साथ एक दहशतजदा संघर्ष भी है वह इस कहानी में दिखाई देता है। कोरोना काल में आम लोगों की पुलिस से लुका छिपी इसलिए भर नहीं होती थी कि वह मार पीट करती थी, बल्कि इसलिए भी होती थी कि वह जेब पर डाका डालने पर भी ऊतारू हो जाती थी। श्रमिक वर्ग में एक तो काम के अभाव में पैसों की तंगी , ऊपर से कहीं मेहनत से दो पैसे किसी तरह मिल जाएं तो रास्ते में पुलिस से उन पैसों को बचाकर घर तक ले आना कोरोना काल की एक बड़ी चुनौती हुआ करती थी। उस चुनौती को अम्मा ने कैसे स्वीकारा, कैसे जूतों में छिपाकर दो हजार रुपये का नोट उसका बच गया , कैसे मौका देखकर वह उड़न छू होकर घर पहुँच गया, सारी कथाएं यहां समाहित हैं।कहानी में एक लय भी है और पठनीयता भी।कहानी का अंत मन में बहुत उहापोह और कौतूहल पैदा करता है। बहरहाल पूरी कहानी का आनंद तो कहानी को पढ़कर ही लिया जा सकता है।       ...

'नेलकटर' उदयप्रकाश की लिखी मेरी पसंदीदा कहानी का पुनर्पाठ

उ दय प्रकाश मेरे पसंदीदा कहानी लेखकों में से हैं जिन्हें मैं सर्वाधिक पसंद करता हूँ। उनकी कई कहानियाँ मसलन 'पालगोमरा का स्कूटर' , 'वारेन हेस्टिंग्ज का सांड', 'तिरिछ' , 'रामसजीवन की प्रेम कथा' इत्यादि मेरी स्मृति में आज भी जीवंत रूप में विद्यमान हैं । हाल के दो तीन वर्षों में मैंने उनकी कहानी ' नींबू ' इंडिया टुडे साहित्य विशेषांक में पढ़ी थी जो संभवतः मेरे लिए उनकी अद्यतन कहानियों में आखरी थी । उसके बाद उनकी कोई नयी कहानी मैंने नहीं पढ़ी।वे हमारे समय के एक ऐसे कथाकार हैं जिनकी कहानियां खूब पढ़ी जाती हैं। चाहे कहानी की अंतर्वस्तु हो, कहानी की भाषा हो, कहानी का शिल्प हो या दिल को छूने वाली एक प्रवाह मान तरलता हो, हर क्षेत्र में उदय प्रकाश ने कहानी के लिए एक नई जमीन तैयार की है। मेर लिए उनकी लिखी सर्वाधिक प्रिय कहानी 'नेलकटर' है जो मां की स्मृतियों को लेकर लिखी गयी है। यह एक ऐसी कहानी है जिसे कोई एक बार पढ़ ले तो भाषा और संवेदना की तरलता में वह बहता हुआ चला जाए। रिश्तों में अचिन्हित रह जाने वाली अबूझ धड़कनों को भी यह कहानी बेआवाज सुनाने लग...